Wednesday, July 13, 2011

जिंदगी किसी को भुलाने मे... कितना तक़्लीफ़ दे जाती है...

जब कभी उस भुले हुये शख्स की याद आ जाती है...
तो कोई एक बात बीते लम्हो की शमा फिरसे जला जाती है...

ना चाहो तुम फिर भी उसीकी तस्वीर आंखो मे बस जाती है...
फिर साथ बिताये पलो को याद करके आंख भी भर आती है

जाने ये जिंदगी भी कैसे कैसे खेल खेल जाती है...
कभी जहा सांस लेना भी रास न था जिसके बिना
उसिसे बे वजह दूरिया बेहद्द बढा जाती है...

यादो मे उसकी जब आंखे नम हो जाती है...
तो उसकी प्यारी सी हसी याद आके फिर
इस रोते हुये चेहरे पे भी हसी छा जाती है...

कहती है दुनिया के ये तो बेकार की उदासी है...
पर दुनिया क्या जाने... जिंदगी किसी को भुलाने मे... कितना तक़्लीफ़ दे जाती है...

- वैभव.

1 comment:

  1. खरंय.....
    म्हणूनच... कशाला विसरायचं?
    आठवणीत ठेवून हसत जगायचं..

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